मैं रोजाना मामूल के मुताबिक सूरज उगने के साथ साथ आफिस के लिए निकल जाता हूं... इस वक्त सड़कों पर सन्नाटा पसरा रहता है... फिर भी रास्ते में कुछ लोगों से सामना जरूर होती है... उनमें से एक फकीर और दूसरा कुकुर- बिल्लियों की जमात है.. सुबह- सुबह ये जानवर अपने मगन में मस्त रहते हैं... इन से कोई कोई डर नहीं लगता, सामने आने से पहले ही इनके लिए रास्ता फ्री कर देता हूं ताकि इनकी मस्ती में खलल ना पड़े...उधर उन फकीरों को भी दुकान लगाते देखता हूं जो अल्लाह- खुदा के नाम पर भीख मांगते हैं और बदले में लोगों को दुआएं देते हैं... लेकिन नमाज के वक्त मस्जिदों में होने के बजाए सड़कों पर होते हैं...हाथ फैलाकर भीख मांगने वाले उन फकीरों का सच क्या है? इस दौरान जरूर देखने को मिल जाता है... आपको पता ही होगा कि भीख पाने के लिए कुछ लोग तरह तरह के नुस्खे अपनाते हैं, कोई अपाहिज की भूमिका निभाता है तो कोई गूंगा- बहरा और नाबीना का रोल अदा करता है...जिसे मैं छुटिटयों के दिनों में इस अंदाज में पाता हूं...उसे रोजाना अहले सुबह एक स्वस्थ इंसान के रूप में देख पाता हूं... खेर, भीख मांगना धंधा है लोग भीख मांगकर गुजारा करते हैं...जिससे जो कुछ मुनासिब होता है लोग बेहिचक दान करते हैं...सालों से चलता आ रहा है इस सिलसिले ने मुझे कभी भी भीख देने पर मजबूर नहीं किया...हां दूसरे कामो के लिए चंदा जरूर देता हूं...
इसी कड़ी मेरी मुलाकात एक औरत से होती थी,जो रोजाना मुझे भीख की आस मं सलाम किया करती थी...जल्दबाजी के चलते मैं खास तवज्जो तो नहीं दे पाता था पर दिल से सलाम का जवाब जरूर देता था...एक दिन लगा कि सलाम का बोझ बढ़ चला है क्यों ना इस बूढ़ी औरत को कुछ पैसे दे दिया जाए... ख्याल के मुताबिक पर्स के बजाए पाकेट में हाथ डाला तो पचास पैसे मिले... जिसे में झट से देकर आगे निकल गया...10कदम के फासले पर कानों में ठन से आवाज आई और पता चला के सिक्का जमीन पर लुढ़कते हुए मुझसे आगे निकल गया...फकीर की इस हरकत को देकर मैं चैंक गया कि आखिर माजरा क्या है...पैसे को उठाया और मुड़कर भिखारन की और देखा तो बुढ़िया गुस्से में बड़बड़ा रही थी...मैं भी गुस्से में उसे ताकता रहा...बुढ़िया फिर बोली-साला भिखारी समझ रखा है ???
पैसे की बेकदरी का मुझे बेहद दुख था..चलते-चलते मैंने बुढ़िया से बोल दिया कि आइंदा इलाके में नजर मत आना वरना धक्के देकर दिल्ली पुलिस के हवाले कर दूंगा..धमकी का असर हुआ है और बुढ़िया पूरे इलाके में आजकल कहीं भी नजर नहीं आ रही है..यहां पर आपको जानकर ताज्जुब होगा कि बुढ़िया इन पैसों को बढ़ाने के लिए छोटे-मझौले दुकानदारों को कर्ज दिया करती थी,मार्केट में लगभग सवा लाख रुपये का कारोबार चलता था.. गहन जांच पड़ताल के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंच पाया
2 टिप्पणियां:
aapne bhi to 50 paise de kar naainsaafi ki...ab ye na bolti to kya bolti...uska bhi to standard hai...waise bhi 50 paise mein to aaj kal 1 toffee bhi nhi aati
कई भिखारियों के पास बहुत पैसे होने के किस्से कई बार अखबारों में भी पढ़े.
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