बिहार बदल गया है,लोग बदल गए हैं, बदलने के इस क्रम में लोगों की मानसिकता बदल गई हैं, सूबे में विकास की बयार बहने लगी है और लोगों के हाथों में सिक्का खनकने लगे हैं,अच्छी बात है बिहार का सदियों बाद कायापलट तो हो रहा है,बदलने के इस खेल का हर कोई क्रेडिट लेना चाहता है, मेरी समझ में जनता को इस कामयाबी का क्रेडिट मिलना चाहिए,
खेर,बदले बिहार में अगर कुछ नहीं बदला है तो वो है सरकार की बातों को दूसरों तक पहुंचाने का एकमात्र जरिया यहां का आकाशवाणी केंद्र,यह देश में सबसे पहले स्थापित छह चुनिंदा रेडियो केंद्रों में से एक है,इस केंद्र को महात्मा गांधी और मौलाना मजहुरूल हक जैसे राजनेताओं के भाषण को जनता तक लाइव पहुंचाने का गौरव प्राप्त है, वो भी पचास साल पहले... जमाना बदल गया है लेकिन इस केंद्र के संचालन के तौर तरीकों और प्रसारण क्षमता में कोई गुणात्मक वृध्दि अभी तक नहीं हुई है, आज भी आप इसे मीडियम वेब पर 19, 31 और 41, 49 मीटर बैंड और 330 किमी हट्र्ज पर बमुश्किल सुन सकते हैं,इस मीटर बैंड पर प्रसारण क्वालिटी इतनी गंदी है कि आप दोबारा इसे सुनना पसंद नहीं करेंगे,
अगर आप प्रादेशिक समाचार सुनने की ख्वाहिश रखते हैं तो भूल जाइए कि नीयत वक्तों पर समाचार सुन पाएंगे, मीटर खिसकाते- खिसकाते और आवाज को पहचानते- पहचानते आपका वक्त संभवतः निकल जाएगा,वैसे प्रादेशिक समाचार इस केंद्र की जान है, जिसे सुनने के लिए ही लोग आकाशवाणी पटना ट्यून करते हैं...वरना इस केंद्र से प्रसारित नीरस कार्यक्रमों को भला कोई क्यों सुनना चाहेगा, ध्यान देने वाली बात यह है कि बिहार का क्षेत्रफल 440 वर्ग किमी के दायरे में फैला है...लेकिन इस केंद्र में लगे ट्रंासपोंडरों की क्षमता सिर्फ 330किमी के दायरे में सूचना पहुंचाने तक की है, ऐसे में इसे प्रादेशिक रेडियो केंद्र कहना शायद गैर मुनासिब ही है,
आकाशवाणी पूर्णिया और दरभंगा इस केंद्र का उपकेंद्र है जहां से एकसाथ एफएम बैंड पर प्रसारण किया जाता है, लेकिन एफएम बैंड की क्षमता 72 किमी से कम ही होती है, नेपाल, बंगाल, झारखंड और यूपी की सीमा से सटे जिलों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है,ऐसे में इन क्षेत्रों के लोग सरकार की नीतियों और कैबिनेट की बैठक में लिए गए अहम फैसलों के बारे में जानने से वंचित रह जाते हैं, वहीं आकाशवाणी लखनउ और आकाशवाणी भोपाल,कोलकाता केंद्र का प्रसारण शाॅर्ट वेब पर बिहार के लोग आसानी से सुन पाते हैं,सवाल यह है कि कुछ बडे़ राज्य रेडियो प्रसारण शाॅर्ट वेब पर कर रहे हंै तो फिर अपना प्रदेश इस मामले में पीछे क्यों है?
अगर आप प्रादेशिक समाचार सुनने की ख्वाहिश रखते हैं तो भूल जाइए कि नीयत वक्तों पर समाचार सुन पाएंगे, मीटर खिसकाते- खिसकाते और आवाज को पहचानते- पहचानते आपका वक्त संभवतः निकल जाएगा,वैसे प्रादेशिक समाचार इस केंद्र की जान है, जिसे सुनने के लिए ही लोग आकाशवाणी पटना ट्यून करते हैं...वरना इस केंद्र से प्रसारित नीरस कार्यक्रमों को भला कोई क्यों सुनना चाहेगा, ध्यान देने वाली बात यह है कि बिहार का क्षेत्रफल 440 वर्ग किमी के दायरे में फैला है...लेकिन इस केंद्र में लगे ट्रंासपोंडरों की क्षमता सिर्फ 330किमी के दायरे में सूचना पहुंचाने तक की है, ऐसे में इसे प्रादेशिक रेडियो केंद्र कहना शायद गैर मुनासिब ही है,
आकाशवाणी पूर्णिया और दरभंगा इस केंद्र का उपकेंद्र है जहां से एकसाथ एफएम बैंड पर प्रसारण किया जाता है, लेकिन एफएम बैंड की क्षमता 72 किमी से कम ही होती है, नेपाल, बंगाल, झारखंड और यूपी की सीमा से सटे जिलों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है,ऐसे में इन क्षेत्रों के लोग सरकार की नीतियों और कैबिनेट की बैठक में लिए गए अहम फैसलों के बारे में जानने से वंचित रह जाते हैं, वहीं आकाशवाणी लखनउ और आकाशवाणी भोपाल,कोलकाता केंद्र का प्रसारण शाॅर्ट वेब पर बिहार के लोग आसानी से सुन पाते हैं,सवाल यह है कि कुछ बडे़ राज्य रेडियो प्रसारण शाॅर्ट वेब पर कर रहे हंै तो फिर अपना प्रदेश इस मामले में पीछे क्यों है?
दोस्तो! आपको तो पता ही होगा कि देश के विकास में सूचना क्रांति का अहम योगदान है, लोगों में जागरुकता फैलाने,सरकारी योजनाओं और फैसलों की जानकारी देने के लिए बिहार जैसे राज्यों के लिए सूचना का आदान-प्रदान करना बेहद जरूरी है,ताकि राज्य के विकास में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके,..जाने क्यों इस गंभीर मसले की और सरकार का ध्यान अब तक नहीं गया है, जबकि बिहार में रेडियो लोगों के ज्ञान का एकमात्र स्त्रोत अब भी बना हुआ है,
बहरहाल,सरकारी की इस लापरवाही का नतीजा लोगों को प्राकृतिक आपदा आने के वक्त भुगतना पड़ता है,इसकी बानगी तब देखने को मिली जब 13अप्रैल को सीमांचल क्षेत्र में आए चक्रवातीय तूफान ‘टोरनाडो’ने जबरदस्त तबाही मचाई,लोग तूफान के गुजरने के बाद भी हवा के हर एक झोंकों से खौफ खाते थे और सुरक्षित ठिाकनों की और निकल पड़ते थे,अगर तूफान के आने या ना आने की जानकारी लोगों को समय पर दे दी जाती तो लोग दहशत के साए में क्यों जीते?,
वैसे आजकल मोबाइल पर रेडियो सुनने की सुविधा है,वहीं 5मई की शाम को बंगाल मौसम विभाग से जारी तूफान की जानकारी सभी उपकेंद्रों से दे दिए जाने पर लोग पहले से ही सतर्क हो गए,लेकिन सीमांचल में किशनगंज के लोगों को तूफान आने की चेतावनी की भनक तक नहीं लगी,आखिरकार लोगों तक सूचना पहुंचाने के लिए जिला प्रशासन को हर एक गांव में मुनादी लगवानी पड़ी...इस नजरिये से भी देखें तो एक खटारा रेडियो स्टेशन की नाकामी से सैकड़ों लोगों की जिन्दगी किस तरह से प्रभावित हो सकती है?,लेकिन सरकार है कि इस मसले की हल के लिए एक छोटी सी पहल भी नहीं कर सकती है---
बहरहाल,सरकारी की इस लापरवाही का नतीजा लोगों को प्राकृतिक आपदा आने के वक्त भुगतना पड़ता है,इसकी बानगी तब देखने को मिली जब 13अप्रैल को सीमांचल क्षेत्र में आए चक्रवातीय तूफान ‘टोरनाडो’ने जबरदस्त तबाही मचाई,लोग तूफान के गुजरने के बाद भी हवा के हर एक झोंकों से खौफ खाते थे और सुरक्षित ठिाकनों की और निकल पड़ते थे,अगर तूफान के आने या ना आने की जानकारी लोगों को समय पर दे दी जाती तो लोग दहशत के साए में क्यों जीते?,
वैसे आजकल मोबाइल पर रेडियो सुनने की सुविधा है,वहीं 5मई की शाम को बंगाल मौसम विभाग से जारी तूफान की जानकारी सभी उपकेंद्रों से दे दिए जाने पर लोग पहले से ही सतर्क हो गए,लेकिन सीमांचल में किशनगंज के लोगों को तूफान आने की चेतावनी की भनक तक नहीं लगी,आखिरकार लोगों तक सूचना पहुंचाने के लिए जिला प्रशासन को हर एक गांव में मुनादी लगवानी पड़ी...इस नजरिये से भी देखें तो एक खटारा रेडियो स्टेशन की नाकामी से सैकड़ों लोगों की जिन्दगी किस तरह से प्रभावित हो सकती है?,लेकिन सरकार है कि इस मसले की हल के लिए एक छोटी सी पहल भी नहीं कर सकती है---
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