प्रकृति का भी अपना नोटिस बोर्ड होता है?यह आपको भले ही अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाली बात लगे..लेकिन यह बात सौ टके सच है..प्रकृति समय-समय पर इसके जरिये मौसम की जानकारी देता रहता है... इसी तरह प्रकृति का एक सशक्त नोटिस बोर्ड है कासी का फुल..
कासी का फुल जहां बरसात की समाप्ति का संकेत देती है..वहीं खेती-बारी के मौसम की समाप्ति का भी सूचक है..कासी के फूल का जिक्र रामायण में भी है..कासी फुल सफेद रंग का हाता है जो धान के खेतों में उगता है...इसके अलावा नदी कछारों में उगता है कासी...जब कासी का फुल खिलता है तो खेत मानों ऐसा लगता है जैसे प्रकृति ने सफेद चादर बिछा दी हो...
कासी घास की एक प्रजाति है...जो मौसम-ए-बरसात की समाप्ति का सूचक माना जाता है...इस फुल का जिक्र रामायण के किसकिंधा कांड में वर्णित है..जहां श्री रामचन्द्रजी अपने अनुज लक्ष्मण को कासी के फुल के बारे में बतलाते हैं...रामायण के अलावे भी लोक कथाओं और परंपराओं में कासी फुल की मान्यता रही है..
कासी का फुलना वर्षा आधारित खेती की समाप्ति की सूचना पुराने समय से ही ग्रामीण क्षेत्रों में प्रच्चलित रही है...अमूमन भादो के अंत में खिलने वाली कासी के फुल का इस वर्ष भादो के प्रारंभ में ही खिल जाना घोर आकाल का संकेत दे रहा है....ऐसा जानकारों का माना है...इसका समय पूर्व खिलना किसी भी हालत में शुभ संकेत नहीं है और यह नजर भी आने लगा है..कम वर्षापात के रूप में...रामायण और ग्रामीण मान्यताओं को सच माना जाय तो कासी का फूल भी सुखाड़ और अकाल की परिस्थितियों की ओर साफ संकेत कर रहा है..झारखंड के अलावा पश्चिमी प्रदेशों में कासी फूल खिलने लगे हैं... इन इलाकों में इस साल वाकई कम बारिश हुई है...
बहरहाल कासी के फूल का खिलना आज जिस भी रूप में देखा जाए,रामायण की पुरातन प्रमाणिकता और ग्रामीणों की मान्यता तो कासी के फुल को प्रकृति का नोटिस बोर्ड के रूप में देखना बड़ी बात नहीं होगी। इस नोटिस बोर्ड के प्रति विश्वास और मजबूत हो जाती है जब इस वर्ष अकाल की धमक सुनाई पड़ने लगी है,और भादो के प्रारंभ में ही कासी का फुल खिलने लगे हैं....
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