22 सितंबर 2010

दिल भले न मिले हाथ मिलाते रहिए.....


चुनावी विसात बिछ चुकी है। सभी राजनीतिक पार्टियां जोर आजमाइश में लगी है। छह चरणों में चुनाव संपन्न होने है। सत्तारूढ दल मंे सीएम के नाम पर नीतीश ही मुख्यमंत्री होंगे जबकि आरजेडी और एलजेपी गठबंधन से लालू सीएम होंगे । लोस चुनाव में मुंह के बल गिरने के बाद एलजेपी सुप्रीमो ने आरजेडी से गलबइयां की और राज्यसभा सांसद बने। विस चुनाव में हालांेकि राजद ने 75 सीटें ही लोजपा को दी। लेकिन राम विलास पासवान को इससे कोई गुरेज नहीं। लालू अपने पाले में 168 सीटें रखी है। जबकि बीजेपी और जेडीयू अपने पुराने स्टैंड पर रहने का राग अलाप रहे है। लेकिन इस गठबंधन के लिए सबसे बड़ी मुसीबत हैं नरेंद्र मोदी। नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम है। और बीजेपी के ब्रांड एम्बेसडर। बीजेपी अपने ब्रंाड एम्बेसडर को चुनाव प्रचार में उतारना चाहती है। लेकिन नीतीश को मोदी से परहेज हैं। यही कारण है कि बीजेपी की बैठक मे नरंेद्र मोदी जब पहुंचे तो नीतीश ने आने से इंकार कर दिया। इतना ही नहीं नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए बाढ़ राहत कोष के करोड़ भी यह कहकर लौटा दिए कि उन्हें मोदी की खैरात नहीं चाहिए। पटना में डिनर पार्टी भी नीतीश ने कैंसिल कर दिया। एकबारगी लगा कि चुनाव से पूर्व गठबंधन कहीं टूट ना जाए। लेकिन दोनेां पार्टियों ने इसे कन्नी काटकर गठबंधन को कायम रखा। क्योंकि गठबंधन टूटने से बीजेपी को ज्यादा नुकसान हो सकता था। हालांकि नीतीश ने बार बार कहा कि नरेंद्र मोदी बिहार में चुनाव प्रचार नहीं करेंगे। जबकि बीजेपी बार-बार ये दोहराती रही कि नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार करेंगे। नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार करेंगे की नहीं ये अभी भी दोनों पार्टियों के लिए यक्ष प्रश्न बना हुआ है। लेकिन इतना तय है कि मोदी यदि प्रचार करने आते हैं तो बीजेपी को भले फायदा पहुंचे लेकिन नीतीश को ये शायद गंवारा न हो। जबकि मोदी मसले पर आरजेडी और एलजेपी, कांग्रेस का कहना है कि किसी के चुनाव प्रचार में आने-जाने से केाई फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि नरेंद्र मोदी बीजेपी के चर्चित नेता हैं इसलिए बीजेपी मोदी को प्रचार करने के लिए जरूर भेजेंगे। फिलहाल नीतीश की ये बात समझ में नहीं आती कि बीजेपी के साथ गठबंधन कर बिहार मंे सत्ता पर काबिज हैं इतना ही नहीं विस चुनाव भी साथ-साथ लड़ने को तैयार हैैं तो फिर नरेंद्र मोदी से परहेज क्यांे। चूंकि लालू भाजपा के घोर विरोधी हैं ऐस में मोदी के चुनाव प्रचार से जेडीयू को नुकसान होगा अर्थात् अल्पसंख्यक वोट छिटकेगा। जो नीतीश कुमार नहीं चाहते। लेकिन गठबंधन बीजेपी के साथ ही रहेगा। नीतीश विकास और सुशासन का राग अलाप रहे हैं ऐसे में वे मोदी के प्रचार प्रसार में ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहते। जबकि इसके उलट बीजेपी अपने को कमजोर मानकर मोदी के प्रचार से अपने को मजबूत करना चाहती है। इस कश्मकश में दोनों ही पार्टियां उलझी हुई है। अब देखना ये है कि मोदी चुनाव प्रचार में आते हैं या नहीं । क्योंकि सत्ता में दोनों ही पार्टियां बनी रहना चाहती है। ऐसे में मोदी को प्रचार में उतारकर बीजेपी गलती नहीं करना चाहेगी।

2 टिप्‍पणियां:

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

sahi hai bhai, aaj kal dil ki sunta kaun hai

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VK Kaushik ने कहा…

thanks for nice article,
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