19 सितंबर 2010

धर्म का एजेंडा सब पर है भारी...


हाल के दिनों में धार्मिक कट्टरवादिता बढ़ी है, धर्म के नाम पर दुकानदारी भी जमकर होने लगी हैं, लोग प्रवचन और फतवा जारी कर चांदी काट रहे हैं, आज के दिन धर्म के नाम पर लाखों करोड़ों का गड़बड़झाला हो रहा है, इसी के सहारे दूसरों की अस्मत भी लोग तार- तार कर रहे हैं, जमाने में बहस भी धर्म पर केंद्रित हो गया है, मौजूदा वक्त में दहशतगर्दी भी इसी के नाम पर हो रही है, और तो और सरकार जन की गणना यानि जनगणना भी धर्म के आधार पर करने का मन बना रही है, वैसे आरक्षण का भूत भी धर्म के नाम नाचता है, बाकी लोगों का वोट भी इसी बहाने से गिरता है, खबरें भी इसी आधार पर छपती है, क्षेत्र का विकास अब धर्म के आधार पर, पद और प्रोन्नति भी इसी आधार पर, धर्म है कि सब पर हावी है, महानगरों में धार्मिक कार्य ध्वनि प्रदूषण की वजह मानती है कोर्ट,
देश को एकसूत्र में पिरोने की ताकत भी धर्म में है, गुनाह करने से रोकने की भी ताकत धर्म में है, आगे बढ़ने और जोश व जज्बे को बनाए रखने की कुव्वत धर्म में है, स्कूलों- कालेजों में एडमिशन देने का आधार धर्म, बेहतर रिजल्ट पाने का बहाना भी है धर्म, आशियाने की तलाश भी धर्म के नाम पर शुरू होती है और खत्म, जाब देने और नहीं देने का बहाना धर्म, जिन्दगी के हर शै पर धर्म का अख्तियार बढ़ता ही जा रहा है, धर्म के नाम पर फैसले इसी नाम से केस, धर्म के नाम पर शादी, इसी बहाने तलाक भी, धर्म को लेकर धक्का- मुक्की, धर्म को लेकर खून खराबा, धर्म का सिक्का हर जगह खनकता है, धर्म का एजेंडा सब पर है भारी
जाने क्यो? आजकल लोगों का धर्म से विश्वास कम होता जा रहा है, हाईटेक हुए धर्म गुरूओं पर से भी लोगों का विश्वास उठता जा रहा है, वक्त की कमी के चलते धार्मिक कार्यों में हिस्सा नहीं ले पाते है लोग, हम हैं कि आरोप मढ़ देते हैं धर्म से मोहभंग होने का, बहरहाल सवाल आखिर पेट का है, अगर पेट फूल है तो इधर भी ध्यान दे देते हैं लोग, वरना धर्म के नाम पर माथापच्ची क्यों करे कोई, खाली पेट वालों का विश्वास भी धर्म पर कम नहीं होता है, ईमानदारी का जज्बा भी खाली पेट से है पैदा होता, मेरा नहीं ऐसा जानकारों का है मानना.
ब्रेक... ब्रेक... ब्रेक के बाद है बहुत कुछ कहना

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