13 सितंबर 2010
‘पेड़ है तो कल है’
पर्यावरण बचाने की मुहिम
बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण, सिमटते जंगल, चढ़ते तापमान और पानी की किल्लत से दुनियावाले दोचार हैं, इस मुद्दे को लेकर दुनिया जहान में जबरदस्त चर्चाएं हो रही हैं... कुछ देशों ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर पहल भी की है... फिर भी धरती का तापमान ज्यों का त्यों बढ़ता ही जा रहा है, ग्लेशियर खत्म होने के कगार पर हैं, सच है कि सारे प्रयास हमेशा नीतिगत स्तर पर हुए हैं... जमीनी सतह पर किसी भी देश की नीति कारगर नहीं... हां, कोशिशें जरूर जारी हैं,
रहने दीजिए देश व दुनिया की बातें... आज हम आपको पर्यावरण को लेकर सतही तौर हो रहे कामों की जानकारी देना चाहेंगे.... सबसे पहले चलते हैं हम बिहार के भागलपुर में...
नवगछिया का धरहरा गांव इस मामले को लेकर इन दिनों चर्चा में है... यह गांव पर्यावरण संरक्षण के मामले में दुनिया के सामने एक मिसाल है... ये और बात है कि गांव के बारे में सूबे के बाहर रहने वालों को कम ही जानकारी है... धरहरा गांव की खासियत यह है कि बेटी पैदा होने पर लोग जश्न मनाते हैं... देश के दूसरे हिस्सों में बेटी जन्मने पर माताओं का क्या हश्र होता है आप लोगों को मालूम ही है, खेर धरहरा गांव में उन दिनों उत्सव का माहौल होता है.... इस गांव में लोग किसी भी लिहाज से बेटी को बोझ नहीं समझते हैं...
यहां की रिवायत है कि एक बेटी पैदा होने पर लोग कम से कम 10 फलदार पेड़ लगाते हैं... इन पौधों को गांव के आसपास या खेतों की पगडंडियों पर लगाया जाता हैं... इससे होने वाली आमदनी को सहेज कर रखा दिया जाता है... बाद में बेटी की विवाह के दौरान इन पैसों का इस्तेमाल किया जाता है... जितनी आमदनी होगी शादी में खर्च भी उतनी ही लोग करते है ... चाहे बेटी की ब्याह जिस घर में क्यों ना हो.... गांव के लोगों का मानना है कि लड़की की जन्म होने से गांव और घरों मे खुशहाली आती है। इसलिए ग्रामीण पौधारोपण कर इसे सेलीब्रेट करते हैं
इस प्रथा ने पूरे गांव को एक नई दिषा दे दी है और विकास के तमाम दरवाजे खोल दिए हंै। खास बात यह है कि गांव की लड़कियां अपना जन्मदिन भी पेड़ के नीचे मनाती है और इस मौके पर पेड़ों की छांव में खाना बनाकर मेहमानों को खिलाती है। इस कदम के बहुआयामी प्रभाव से गांव में खुशहाली का आलम है। गरीबी, भूखमरी, पलायन, बेरोजगारी और पर्यावरण असंतुलन गांव की फिजा से कोसों दूर है। नवगछिया का यह इलाका जहां बाढ़ और सूखे के मकड़ जाल में फंसा रहता है वहीं इस गांव में ऐसी कोई भी समस्या नहीं है। पूरे भागलपुर का जलस्तर 14 फीट नीचे चला गया है। लेकिन धरहरा में सूरत ए हाल ऐसी नहीं है... खास बात यह है कि चमगादड़ों गांव को ही अपना बसेरा बनाया है। लोगों का मानना है कि चमगादड़ वहीं रहते हैं जहां पर्यावरण संतुलित रहता है। ग्रामीणों के मुताबिक चमगादड़ सुख और समृद्वि का प्रतीक होता है....
इस गांव के बुर्जूगों को इस बात का इल्म रहा होगा कि ग्लोबलवार्मिंग जैसी समस्या पुरे विष्व के लिए खतरा उत्पन्न कर सकती है तभी ऐसी प्रथा की नींव डाली गई होगी। सचमुच ये कदम पूरे विष्व के लिए अनुकरणीय है। इस मुहिम में अगर आप भी भागीदारी निभांए तो बेहतर कल का निर्माण कर सकते हैं...
गांव वालों की इस अनोखी पहल के बारे में सुनकर अप्रैल के दूसरे हफ्ते में मुख्यमंत्री नीतीष कुमार ने गांव का दौरा किया... स्वयं विकास की इस बेहतरीन मिसाल को देखकर मुख्यमंत्री भी चकित रह गए.. उन्होंने इस माडल को बिहार के दूसरे जिलों में भी अपनाने की बात कही... विष्वास यात्रा के दौरान नीतीष कुमार जहां भी गए सभी सभाओं में लोगों से धरहरा माडल को अपनाने और इस मुहिम को आगे बढ़ाने की अपील की... मुख्यमंत्री के दौरे के बाद गांव सुर्खियों में है और विश्व के मानचित्र पर छाने लगा है.....
अब इस गांव से निकल कर चलते हैं मधेपुरा जिला... यहां के भूपेंद्र नारायण मंडल यूनिवर्सिटी ने धरहरा माडल को व्यावहारिक पाठ्यक्रम में षामिल कर लिया है... वाइस चांसलर डाॅ आर पी श्रीवास्तव ने नोटिस जारी कर सभी छात्रों के लिए पौधारोपण करना अनिवार्य कर दिया है.... यूनिवर्सिटी में अब दाखिला लेने से पहले सभी छात्रों को पौघारोपण और देखभाल से संबंधित प्रमाण पत्र सौंपना होगा.... वरना दाखिला नहीं दी जाएगी... गौरतलब है कि यूनिवर्सिटी में 40 हजार से ज्यादा छात्र हैं... इस मुहिम में एक एक छात्र भी भागीदारी निभाएं तो धरती की हरियाली को बचाने में एक कारगर पहल जरूर होगी.....
यहां से निकलकर चलते हैं अब राजा रजवाड़ों के शहर में... इस शहर को भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का गृहनगर होने का भी गौरव हासिल है... इस इलाके में भी लोग पर्यावरण को बचाने की मुहिम चला रहे हैं... कौरान सराय पंचायत के कचैनिया गांव वासियों ने पौधारोपण कर जिले का नाम रोषन किया है... यही वजह है कि आज इस गांव की पहचान विनोबा वन से होने लगी है... विनोबा 99 एकड़ भूक्षेत्र में फैला है... पर्यावरण के बचाने के लिए ग्रामीणों की सामूहिक प्रयास का ये षानदार नतीजा है.... हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीष कुमार इस वन क्षेत्र का मुआयना कर लौटे हैं... इससे प्रभावित होकर सरकार ने सहयोग के साथ साथ अनुदान देने का भी एलान किया है...
दोस्तो यहां पर कहने के लिए अब कुछ नहीं बचा है.... मुझे लगता है कि इन इलाकों का दौरा करने के बाद... अब आप भी इस मुहिम में षामिल होने का मन बना रहे होंगे... अगर इसी सोच के साथ देश का हर नागरिक गांव-घर और पर्यावरण को बचाने में योगदान दे तो हम बेहतर माहौल में वाकई सांस ले सकेंगे... उम्मीद है कि निचले स्तर पर दुनिया बचाने के लिए जारी मुहिम एक दिन जरूर रंग लाएगी
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