07 सितंबर 2010

बिहार में नक्सलियों का प्रभाव


बिहार के 38 में से 33 जिलों में नक्सलियों का प्रभाव है... नक्सली घटना कि वजह से लखीसराय एक बार फिर सुर्खियों में है... लेकिन पुलिस महकमा बढ़ते आंतरिक खतरे की गंभीरता को समझ रही है... हाल के वर्षों में हुए नक्सली घटनाओं के आंकड़े दर्शाते हैं कि आमने- सामने की लड़ाई में पुलिस के लिय चुनौतियां बरकरार है...
29 अगस्त को लखीसराय में पुलिस और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ के बाद पुलिस महकमा सकते है.. बिहार में नक्सलियों ने पहले कभी इतना बड़ा हमला नहीं किया था... हमले में दस जवान शहीद हो गये.. चार जवानों को नक्सलियों ने बंधक बना लिया... सरकार से लेकर पुलिस तक जवानों की सकुशल रिहाई के लिये दिन- रात एक करने के बाद आखिरकार 6 अगस्त को बंधकों को रिहा किया गया... लेकिन लुकस टेटे की शहादत के बाद...
बिहार के 33 जिलों में नक्सलियों का प्रभाव है... जहां अक्सर नक्सली वारदातें होती रहती हैं... प्रदेश में इस वर्ष अब तक 100 नक्सली घटनाएं हो चुकी हैं... जिनमें पुलिस और नक्सलियों के बीच 40 बार मुठभेड़ की घटनाएं हुईं... इस दौरान कुल 14 पुलिसकर्मी शहीद हुए... जबकी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक इस वर्ष पुलिस ने अब तक 10 नक्सलियों को मार गिराया है... छह जनवरी 2010 को भागलपुर के बिहार सैन्य बल के शिविर पर नक्सलियों ने हमला कर हथियार लूट लिए... इसके बाद दो मई को औरंगाबाद जिले के टंडवा थाना क्षेत्र में बैंक पर हमला कर नक्सलियों ने चार जवानों की हत्या कर दी...
गौरतलब है कि वर्ष 2008 में कुल 79 नक्सली घटनाएं हुई थी... जिनमें पुलिस और नक्सलियों के बीच 46 मुठभेड़ की घटनाएं शामिल हैं... इन घटनाओं में 21 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे... पुलिस ने 31 नक्सलियों को मार गिराया था... वर्ष 2009 में 123 नक्सली वारदातें हुई... जिनमें 26 बार पुलिस और नक्सली आमने- सामने हुए... इस दौरान जहां 25 पुलिसकर्मी शहीद हुए... वहीं 3 नक्सलियों को पुलिस मे मार गिराया... नवादा के कउवाकोल थाना क्षेत्र में 9 फरवरी 2009 को नक्सलियों ने पुलिस दल पर हमला कर थाना प्रभारी समेत 10 जवानों की हत्या कर दी थी...
आंकड़े दर्शाते हैं कि धीरे- धीरे ही सही नक्सली अब बिहार पर भी अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं... आंकड़ों का दूसरा पहलु यह भी है कि पुलिस कमजोर साबित हो रही है... या फिर इस बढ़ते खतरे को अभी भी गंभीरता से नहीं ले रही है... नक्सलियों से निपटने में राजनीतिक भुमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण है... जब तक राजनेताओं के बीच इस मसले पर सामंजस्य स्थापित नहीं होगा और वोट बैंक की राजनीति खत्म नहीं होगी... तब तक नक्सली ऐसी चुनौतियां पेश करते रहेंगे...

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