05 सितंबर 2010

मत करो पुलिस की नौकरी!


मत करो पुलिस की नौकरी...इसलिए नहीं कि तुम कायर हो...तुम डर गये हो...तुम्हारी नसों में दौड़ने वाला गर्म लहू ठंढा पड़ गया है...हां...तुम्हारा सिस्टम कायर है...पंगु है...लाचार है...बेबस है...तुम पर अपना हुक्म चलाने वाले बड़े साहब कायर हैं...ये साहब और सिस्टम तुम्हें शहीद होने के लिए भेज देते है...तुम्हें फर्ज की दुहाई दी जाती है...तुम्हें अपना कर्तव्य याद दिलाया जाता है...ये अलग बात है कि मुठभेड़ के दौरान तुम्हारा हथियार जवाब दे जाता है...उससे गोलियां नहीं निकलती है...और तुम वही थ्री नॉड थ्री के सहारे छोड़ दिये जाते हो...
मत करो पुलिस की नौकरी...नहीं तो सकता है एक दिन तुम भी किडनैप कर लिये जाओ...और तुम्हारी भी फैमिली इसी तरह गिडगिडायगी...बिलबिलायगी...और तुम्हारी जिंदगी की भीख मांगेगी...लेकिन याद रखना कोई नहीं पिघलेगा...ना नक्सली...ना साहब...हो सकता है तुम शहीद हो जाओ...तुम बच जाओ...इस देश में जब कोई नक्सली मारा जाता है तो दिल्ली में बैठे कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी और केन्द्रीय मंत्री मानवाधिकार के नाम पर बहुत चिल्ल पौं मचाते हैं...लेकिन जब तुम्हें और तुम्हारें दर्जनों साथियों को बेरहमी से मार दिया जाता है...तो मानवाधिकार के पैरोकार अपना जुबान सील लेते हैं...आखिर इन बुद्धिजीवियों की नजर में जवान मानव तो हैं नहीं ..जो उन्हें मानवाधिकार का हक मिलेगा...

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