साल 1962 में बिहार विधानसभा चुनाव जीतने वाली महिलाओं की संख्या पैंसठ थी.. जिसका रिकॉर्ड आज तक नहीं टूट पाया...उसके बाद हुए ग्यारह विधानसभा चुनावों में ना तो ये रिकॉर्ड टूट पाया है,, और ना ही ये संख्या तीस को भी पार कर सका है... लेकिन इस बार महिलाएं टिकट को लेकर सशक्त दिख रही हैं..
इस बार चुनाव में क्या होगा आधी आबादी का? ये सवाल सियासी गलियारों में गूंज रहा है...सभी राजनितिक दल महिलाओं को हिस्सेदारी देने में काफी तंगदिल हैं,, यही कारण है कि 1962 का रिकॉर्ड आज तक नहीं टूट पाया है..मगर इस बार महिलाओं ने मोर्चा संभाल लिया है और वो टिकट में भागीदारी मांग रही हैं...
पिछले चुनाव में जेडीयू ने 15 महिलाओं को मैदान में उतारा था,, लेकिन उनमें से 11 ही जीत सकीं,,जबकि आरजेडी की 14 महिला उम्मीदवारों में से सिर्फ पांच ही विधानसभा पहुंच सकीं... बीजेपी ने 9 को टिकट दिया.. जीती 4.. कोंग्रेस ने भी नौ को टिकट दिया, लेकिन जीती 2, एलजेपी की 17 महिला उम्मीदवारों में से एक ही जीत पाई...पिछले नतीजे कुछ भी रहे हो मगर इस बार बीजेपी में भी दावेदारी मजबूत है... राजद सुप्रीमो के तेवर इस बार बदले-बदले से हैं.. सो इनके दल में महिलाएं 40 फीसदी आरक्षण मांग रहीं हैं.. भले ही ये महिलाएं अपनी आवाज बुलंद कर रही हों,,,,लेकिन सच ये हैं कि किसी भी दल में टिकट तय करने में महिलाओं की भूमिका नहीं है..ऐसे में उनकी आवाज का जादू चल पाएगा... ये तो वक़्त ही तय करेगा...
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