बिहार के कुछ इलाकों में लोग जल संकट का सामना कर रहे हैं। शायद कम लोगों को ही यकीन होगा कि सूबे में लोग पानी की किल्लत से दोचार हैं। पटनासिटी,भागलपुर और रोहतास के कुछ इलाकों में पानी की कमी से लोगों का हाल बेहाल है...इन इलाकों में पानी के लिए लोग दर-दर भटकते हैं!जल संकट की मार लोगों की रोजी रोटी के अलावा सामाजिक ताने बाने पर भी पड़ रहा है। इन इलाकों में गर्मी हर साल एक आफत बनकर आती है लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस जाते हैं। सामान्य से नीचे जल स्तर पहुंच जाने पर स्थिति भयावह हो गई है। सुबह उठकर काम पर जाने की बजाए लोग प्यास बुझाने के लिए इधर से उधर भटकते हैं...फिर भी पीने के लिए लोगों को मन भर पानी मुयस्सर नहीं हो पाता है...पानी के बगैर लोगों की दिन का चैन और रात की नींद गायब हो गई है...इन क्षेत्रों में कई वर्षों से पानी की किल्लत है। कुदरत की मार से प्रशासन वाकिफ तो है..लेकिन लोगों का ख्याल है किसे?अब तो हालत बद से बदतर हो गए हैं...
भागलपुर के नाथनगर में लोग गंगा के किनारे जरूर बसे हैं,लेकिन यहां पर भी ग्रामीण पानी के लिए तरस रहे हैं...भीष्ण गर्मी के चलते तालाब सूखे चुके है,कुओं में पपड़ी जम चुकी है और जलस्तर नीचे जाने से चापाकल की पहुंच पानी से दूर हो चली है...नतीजन लोगों को नदी किनारे बालू छानकर पानी जमा करना पड़ रहा है...सुबह होते ही लोग बर्तन लेकर इस काम में लग जाते हैं और दिन भर जगह जगह खुदाई कर पानी भरने का काम करते हैं...पानी की कमी का मार स्कूली बच्चे भी झेल रहे हैं जो बगैर नहाए धोए स्कूल जाने को मजबुर हैं..जलसंकट से सबसे ज्यादा आहत यहीं की महिलाएं हैं...मर्दो के काम पर चले जाने से काफी मेहनत व मशक्कत के बाद औरतें अकेले ही पीने का पानी जमा करती हैं...जिसके सहारे लोगों की आगे की जिंदगी कटती है। खास बात यह है सूबे के पीएचईडी मंत्री अश्विनी चैबे का यह इलाका है और यहीं से दोबारा सांसद चुने गए हैं बीजेपी प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन...इन नेताओं को अपने इलाके की बदहाली की खबर है या नहीं...?कह पाना मुश्किल है।
वहीं पटनासिटी की बात करें तो यहां पर लोग पिछले एक दशक से पानी के लिए मारामारी कर रहे हैं.. भीष्ण गर्मी के चलते इलाके का जलस्तर नीचे चला गया है...बार बार पंप फेल होने से भी लोग पानी के लिए परेशान हैं...पानी-बिजली की मांगों को लेकर रोजाना लोग सड़कों पर उतर रहे हैं। लेकिन इनकी कोई सुनने वाला नहीं...नगर निगम की नाकामी इनकी उम्मीदों पर पानी फेरने के लिए काफी है जो शहर में पर्याप्त मात्रा में पानी सप्लाई करने में नाकाम है,पिछले कुछ महीनांे से खाजेकलां और आलमगंज इलाके का पंप खराब है...फंड की कमी का बहाना बनाकर नगर निगम इसे ठीक करने की जहमत भी नहीं उठा रही है...पटनासिटी इलाके की यह दशकों पुरानी बीमारी है..लगता नहीं की सुशासन बाबू के राज मसले का कोई हल निकल पाए...वैसे गंगा किनारे बसे पटना शहर में पानी की किल्लत..सरकारी लापरवाही से ज्यादा कुछ नहीं है..राजधानी में स्वच्छ जल सप्लाई नहीं होना भी लोगों की परेशानी की एक वजह है...बिहार के स्वास्थय मंत्री नंद किशोर यादव का यह इलाका है और पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और सांसद शत्रुघ्न सिंह का यह चुनावी क्षेत्र है....मामला आय दिन सुर्खियों में रहने के बावजूद भी ये दोनों इस मुसीबत से बेखबर हैं...
उधर कैमूर में भी पानी के बगैर ग्रामीणों का जीना मुहाल हो गया है...यहां पर 60 से भी ज्यादा गांवों में जल संकट गहराया गया हैं...खासकर कैमूर पहाड़ी की तलहटी में बसे गावों में हालात बद से बदतर हो चुकी है...इन इलाकों में पानी के लिए ग्रामीण दिन भर भटकते रहते हैं फिर भी लोगों को पीने लायक पानी नसीब नहीं हो पाता है...सूखा प्रभावित क्षेत्र घोषित होने के बावजूद भी लोगों को राहत पहुंचाने में आपदा विभाग नाकाम रही है...इस संकट से वाकिफ प्रशासन लोगों का प्यास बुझाने के लिए गांवों में वाटर टैंकर भेज तो देती है..लेकिन शिद्दत की प्यास बुझाने के लिए यह प्रयास बिल्कुल नाकाम साबित हो रही है...वैसे कभी कभी ही इन सूखा प्रभावित गांवों में टैंकर भेजी जाती है....यहां पर लोग पानी के लिए दिन रात बैचेन रहते हैं..इस मुसीबत की मार सबसे ज्यादा बच्चों पर पड़ी है...जो वक्त बेवक्त पानी पीने में एक तरह से कासिर है...लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार का यह चुनावी क्षे़त्र होने के साथ साथ सांसद का गृहनगर भी है...संसद में दूसरे इलाके का हाल जानकर उन्हें तो अपने लोगों का गम शायद कम ही लगता होगा...!
कैमूर के अजमेर बीघा और भागलपुर के नाथनगर जैसे इलाकों में जलसंकट का असर सामाजिक ताने-बाने पर भी पड़ रहा है...इन गांवों में लोग बेटी ब्याहना नहीं चाहते हैं..अच्छी खेती बारी और पढ़ा लिखा होने के बावजूद भी गांवों में कई युवक घरवाली की चाह में आस लगाए बैठे हैं...घर में पेयजल नहीं होने से इन लोगों को कोई कद्रदान नहीं मिल रहा है...इनके माता पिता अपने बच्चों का घर बसाने को लेकर चिंतित है...दरअसल ये ऐसे गांवों हैं जहां पेय जल लाने के लिए महिलाओं को सिर पर मटका लेकर कोसों दूर जाना पड़ता है...यही वजह है कि लोग इन गांवों में बेटी ब्याहना नहीं चाहते हैं....लड़की वाले जब गांवों में आते हैं तो यहां की महिलाओं को अपने सिर पर पानी ढोते हुए देखते हैं..ऐसे में लड़की के घर वालों को लगता है कि उनकी लड़की की शादी यहां होती है तो उसे भी पानी दूर से ढोना पड़ेगा...वे शादी की बात को आगे बढ़ाए बिना ही लौट जाते है...इन गांवों में शादी जैसे सामाजिक रिश्ते के ताने बाने को भाग्य की जगह पानी बुन रहा है...
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