25 अगस्त 2010

लौट के आजा परदेसी

इन दिनों पंजाब,हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के किसानों के होंठों पर यही गीत है,इन क्षे़त्रों में मौनसून के दस्तक देते ही धान की बुआई की तैयारी में किसान लग जाते हैं,इस बीच परदेसी खेतीहर मजदूर गांव-घर से लौट आते हैं और इलाके में सावन-आषाढ़ की मदस्मत फुहारों के साथ लोग झूमके खेती करते हैं,लेकिन इस बार मौसम की बेरूखी के साथ साथ खेती हर मजदूर भी कुछ रूठे हुए हैं,सीजन आ चुका है,मौसम बईमान बना हुआ है, लेकिन अगर कोई नहीं आया है तो बिहार-झारखंड,बंगाल और उड़ीसा से आए प्रवासी कामगार, जिनका इलाके में शिद्दत से इंतजार हो रहा है,
आज के दिन मजदूरों की तलाश में मायूस किसान दिनभर रेलवे स्टेशनों में चक्कर लगाते रहते हैं, किसानों को उम्मीद रहती है कि हमेशा की तरह ही इन प्रदेशों से आने वाली रेलगाड़ियों में मजदूरों का कोई बड़ा जत्था आएगा और उसे अपने घर लेकर जाएंगे,फिर आराम से खेतीबारी करेंगे, लुधियाना,मोगा,फिरोजपुर,हिसार,मेरठ में स्टेशनों पर दिनभर कुछ इसी तरह की हलचल रहती है, इन स्टेशनों से होकर गाड़ियां गुजरती रहती है लेकिन अबकी बार पुराने पैसेंजरों के दीदार में किसानों की आखें तरस रही हैं,दिन गुजरने के साथ-साथ किसानों के उम्मीदों पर पानी फिरता जा रहा है,हिम्मत खो रहे किसानों को बस यही फिक्र सता रही है कि आखिर इस बार कैसे धान की बुआई हो सकेगी?
एक जमाना था जब इन इलाकों में खेतों की पगडंडियों पर प्रवासी मजदूरों के कदमों के निशान मिलते थे,खेतों में खड़ी फसलों पर इन लोगों का पहरा होता था,शाम व सहर चैक-चैराहों पर इन मजदूरों का जमावड़ा लगता था,भोजपुरी और बंगला गीतों के गूंज अनायास ही सुनाई देती थी, डाकघरों में मनीआर्डर करने वालों का तांता लगा रहता था,कामगारों की भारी भीड़ को देखकर लगता था कि इन प्रदेशों में कहीं ना कहीं उपप्रदेस बसता है,यही वजह है कि दूर प्रदेस से आए कामगार पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश में आर्थिक प्रगति का आधार माने जाते थे,
इन मजदूरों की खून पसीने की मेहनत के बदौलत यहां लोग खूब मालामाल हो रहे थे,तब यहां के किसानों को मानव संसाधन की कद्र समझ में नहीं आई,घमंड और दौलत की नशे में चूड़ यहां के किसान तब खूब मनमानी किया करते थे,डरा धमका कर इन लोगों से मनचाहे तरीके से काम करवाते थे,नतीजतन मजदूरों की सुबह और शाम खुले आसमान के नीचे गुजरती थी,खाने-पीने के कोई ठिकाना नहीं होता था,बस दिन-रात मेहनत करना मजदूरों की मामूल में शुमार हो चुका था, अफीम युक्त चाय पिलाकर इनसे खूब काम लिया जाता था,और तो और काम के मुताबिक पगाड़ नहीं मिलना आम समस्या थी, वक्त बेवक्त पैसे मांगने और छुटटी करने पर इन लोगों को बंधक बना लिया जाता था,
बहरहाल,यहां के किसानों की मनमानी से आजिज आकर धीरे-धीरे मजदूरों ने पश्चिम भारत आना बंद कर दिया है,मजदूरों के मूंह मोड़ लेने से किसानों को अब उनकी कद्र समझ में आई है,रूठे कामगारों को वापस बुलाने के लिए ढेर सारे प्रलोभन दिए जा रहे हैं,किसान अब मजदूरों को फोन पर दूगुनी मजदूरी के साथ-साथ रिहाइश के अलावा खान-पान की सुविधा का आफर दे रहे हैं,कुछ लोग आने-जाने के लिए रेलवे टिकट की भी बात कह रहे हैं,लेकिन मूंह के बल गिरे इन किसानों की बातों को ये लोग एक कान से सुन रहे हैं और दूसरे कान से उड़ा दे रहे हैं, दरअसल मजदूरों को अब इन चीजों की जरूरत नहीं रह गई है,आज के दिन जिस तरह से हर हाथ में मोबाइल है उसी तरह से हर हाथ में काम भी है,चाहे वो मनरेगा के तहत काम मिले या फिर खुद का धंधा करे, कलके मजदूर आज के दिन मालिक बन गए हैं, बदले भारत की यह एक खूबसूरत निशानी है,
वैसे गरीबी की मार,जमाने की बेकद्री झेल चुके इन मजदूरों ने बदलते वक्त के हिसाब से अपनेआप के ढाल लिया है, ज्यादातर लोग नए- नए नुस्खे अपना कर घर बैठे ठाठ की कमाई कर रहे हैं, यही वजह है कि इनकी सोच और जीवन स्तर में व्यापक बदलाव आया है, इसलिए अब इन्हें बीवी, बाल-बच्चों को छोड़कर प्रदेस जाने की जरूरत नहीं है,इनके बच्चे अब स्कूलों में धमाचोकरी करते हुए देखे जा सकते हैं,मेहनतकश मजदूरों के हाथों में सिक्का खनकने लगे हैं, होठों पर अब मुस्कान सजी है,यही वजह है कि इन दिनों गांव घरों में खुशी के गीत गाए जा रहे हैं,वक्त के साथ चलने का फायदा अब लोगों को मिलने लगा है और धीरे-धीरे लोग प्रदेस को बाय बाय कह रहे हैं,
मजदूरों की बेरूखी की वजह चाहे जो भी हो लेकिन पश्चिमी भारत के मैदानी इलाकों में धान की बुआई समय पर नहीं हो पाने से किसानों के सामने आर्थिक संकट पैदा हो गया है,किसानों को डर है कि मजदूरों की बेरूखी अगर यूं ही कायम रही तो उन्हें कर्ज तले दबने से कोई नहीं बचा सकता है,उधर खेती सही से नहीं हो पाने पर इसका प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर भी पडना लाजिमी है, नतीजतन देश में महंगाई को और हवा मिलेगी,ऐसे में वक्त रहते ही सरकार को कृषि तकनीकी को बढ़ावा देनी चाहिए ताकि देश के किसान समय और मौसम के हिसाब से खेतीबाड़ी कर सके

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