16 जनवरी 2011

जिंदगी रंगहीन गुलदस्ता



















ये महाभारत की कुंती नहीं है । ये है खानाबदोश की जिन्दगी जीने को मजबूर लखनउ की रहने वाली कुंती । कुंती इन दिनों बोकारो में है तो कल पटना में होंगी। अपने परिवार के चैदह सदस्यों के साथ जिनमें सात बच्चे भी शामिल हैं। कुंती अपने मां बाप के साथ कभी इस शहर तो कभी उस शहर में भटकती रहती है। क्योंकि पेट की आग उसके परिवार को जहां तहां भटकने के लिये मजबूर करती रहती है। कुंती ने सपना देखा था कि वह भी पढ़ लिख कर अपना और अपने परिवार का नाम रौशन करेगी । लेकिन नसीब में था दर दर भटकना । कुंती कागजों के रंगीन फूलों का गुलदस्ता बना कर दूसरों के घरों को खूबसूरत तो बनाती है लेकिन उसकी जिन्दगी कभी खूबसूरत नहीं हो पायी है ।

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