झारखण्ड के लिए साल 2010 राजनीतिक रूप से काफी उथल-पुथल भरा रहा.... शिबू सोरेन को इसी साल मुख्यमंत्री की गद्दी छोडनी पड़ी..... न तो उन्होंने विधानसभा का चुनाव ही लड़ा और न ही अपनी सरकार बचा पाए..... संसद में जब विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाया तो यूपीए के पक्ष में गुरूजी ने वोट कर दिया..... जबकि झारखण्ड में वो बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने हुए थे..... अपनी इस किये की भरपाई उन्हें सीएम की कुर्सी गवां कर करनी पड़ी.
इससे पहले 4 जनवरी को झारखण्ड के तीसरे विधानसभा के पहले दिन 70 विधायकों ने शपथ ली थी.... बीजेपी नेता सीपी सिंह विधानसभा अध्यक्ष चुने गये जो रांची से विधायक थे.... 7 जनवरी को शिबू सोरेन की सरकार ने विधानसभा में विश्वास मत हासिल किया.... लेकिन 23 मई को बीजेपी ने शिबू सरकार से समर्थन वापिस ले लिया..... लिहाजा 30 मई को शिबू सोरेन को इस्तीफा देना पड़ा.।
इसके बाद सूबे में राष्ट्रपति शासन लगा दी गई..... सरकार बनाने के लिए बीजेपी, आजसू और जेएमएम के बीच रणनीति बनती बिगड़ती रही.....और आखिरकार ग्यारह सितंबर को ये कोशिश रंग लाई और अर्जुन मुंडा ने मुख्यमंत्री का पदभार संभाला....उनके साथ हेमंत सोरेन और सुदेश महतो ने भी उपमुख्यमंत्री की शपथ ली.... 14 सितंबर को सरकार ने विश्वास मत भी हासिल कर लिया.... ।
झारखंड के लिए दो हजार दस की सबसे बड़ी उपलब्धी रही पंचायत चुनाव का सफलतापुर्वक आयोजन.... राज्य में 32 साल बाद पंचायत चुनाव हुए.....।
इसी साल 14 अक्तूबर को राज्य निर्वाचन आयोग ने राज्य में होने वाले पंचायत चुनाव के लिए पांच चरणों की तारीखों की घोषण की थी.... करीब 32 वर्ष बाद हुए पंचायत चुनाव में झारखंड के युवाओं ने अपना परचम लहरा दिया.... यहां जीतने वाले सदस्यों में अधिकतर युवा हैं.... इस चुनाव में आदिम जनजाति के असुर, बिरहोर, बिरजिया, कोरवा और पहाड़िया समाज के युवाओं का सर्वाधिक बोलबाला रहा है।
राज्य के विकास का जिम्मा पहले सिर्फ़ प्रदेश के 81 विधायकों पर था.... अब झारखंड में 53 हजार 207 नये जनप्रतिनिधि बन रहे हैं..... जो ग्रामीण झारखंड के भाग्य विधाता होंगे.....इन जनप्रतिनिधियों पर प्रदेश के 259 प्रखंडों के 32 हजार से ज्यादा गांवों के विकास का जिम्मा होगा...... पंचायत चुनाव के बाद अरबों रुपये गांवों में विकास के लिए अळग-अळग मदों में जायेंगे....।
हालाँकि, नक्सलियों ने इस चुनाव का बहिष्कार कर रखा था..... कहीं-कहीं नक्सलियों ने उत्पात भी मचाया....फिर भी ये चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हो गए जो झारखण्ड के लिए एर बड़ी उपलब्धि रही।
दो हजार दस में पूरे साल झारखंड पुलिस नक्सलियों पर नकेल कसने के लिए परेशान रही... नक्सलियों के खिलाफ साल भर चलाए गए अभियान के दौरान पुलिस ने कुल 527 उग्रवादियों को गिरफ्तार करने में सफलता पाई। इनमें 45 एरिया कमांडर या इससे उपर के पदों पर काबिज थे... साथ ही बिहार झारखंड स्पेशल एरिया कमेटी स्तर के दो नक्सली भी इसमें शामिल हैं।
अपराध और अपराधियों के खिलाफ अंकुश के मामले में भी पुलिस के लिए राहत की बात यह रही कि इस साल पिछले साल की अपेक्षा आपराधिक कांडों के आंकड़े में मामूली अंतर रहा।
पुलिस की ओर से नक्सलियों के खिलाफ चलाए गए अभियान में इस साल नवंबर महीने तक तक 2165 किग्रा विस्फोटक, 141 लैंड माइंस, 10 हजार 529 डेटोनेटर, पांच मोर्टार सेल, साढ़े पांच हजार जिंदा कारतूस, पुलिस से लुटे गए 24 हथियार जब्त किए गये।
इसी तरह 37 नियमित हथियार व 243 देशी हथियार भी पुलिस ने जब्त किए। इतना ही नहीं पुलिस ने इस साल नक्सलियों के दस बंकरों को भी ध्वस्त करने में सफलता प्राप्त की। आपको बता दे कि इस साल पुलिस से 59 बार नक्सलियों का आमना—सामना हुआ।
भ्रष्टाचार और झारखंड लगता है दोनों एक सिक्के के दो पहलू हो गये हैं....दो हजार से भ्रष्टाचार का जो खेल यहां शुरू हुआ है वो दस साल बाद भी जारी है.... भ्रष्चार के शिखर पर बैठे मधु कोड़ा का नाम दो हजार दस में सुर्खियों में रहा।
मधु कोड़ा के घर उनके सहयोगियों के घर छापेमारी और देश विदेश से जुड़ते उसके तार के हर पहलू की जांच आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय साल भर करता रहा लेकिन अभी तक इस मामले में किसी तरह की कोई सफलता नहीं मिल पाई है सिवाय चंद सबूतों के।
राज्य में घोटालों की सूची बहुत लंबी है.... 300 करोड़ का बिजली बोर्ड घोटाला.... 103 करोड़ का दवा घोटाला..... 100 करोड़ का अलकतरा घोटाला.... 37 करोड़ का मेडिकल उपकरण घोटाला.... 25 करोड़ का नमक घोटाला एवं 10 करोड़ का खाद-बीज घोटाला चर्चित रहे हैं..... राज्य गठन के व़क्त झारखंड में प्रति व्यक्ति क़र्ज़ का बोझ जहां 2000 रुपये था, वह बढ़कर 7000 रुपये हो गया है. सूबे में शायद ही ऐसा कोई सांसद या विधायक होगा, जिसकी करोड़ों की हैसियत न बन गई हो..... अपरिपक्व विधायिका और नौकरशाहों की अदूरदर्शिता के चलते वित्तीय प्रबंधन में संतुलन नहीं हो सका..... एक तऱफ सरकार वित्तीय घाटे को कम करने के लिए क़र्ज़ लेती है, वहीं दूसरी ओर विकास मद के करोड़ों रुपये सरेंडर हो जाते हैं....राज्य गठन के समय सरकार का क़र्ज़ लगभग 6.5 हज़ार करोड़ रुपये था, जो अब 22 हज़ार करोड़ रुपये से भी अधिक हो गया है.
झारखंड लोक सेवा आयोग का हाल भी कुछ ऐसा ही रहा.... यहां बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल करार दिया गया जो किसी भी रूप में इसके लायक नहीं थे..... नेताओं और नौकरशाहों के परिजनों के बीच जिस तरह से नौकरियं की बंदरबांट हुई वो शर्मनाक है।
दो हजार दस में एक खबर ने झारखंड के करोड़ो श्रद्धालुओं को सदमें में डालने वाला था.... दो जुलाई को हिन्दुओं की आस्था से जुड़ी रजरप्पा स्थित शक्तिपीठ में मां छिन्नमस्तिका की प्रतिमा को अपराधियों ने खंडित कर उससे अमूल्य रत्न की चोरी कर ली।
मुख्य प्रतिमा पूरी तरह से खंडित थी। मूर्ति की सोने की आंखें और उसकी सोने की बिंदी गायब थी। मां का चांदी का आवरण भी गायब मिला। मुख्य प्रतिमा के चारों ओर बने पिंड डाकिनी, वर्णिनी, रति व काम के पिंडों को भी चोरों ने क्षतिग्रस्त कर दिया था और इनके कुछ टुकड़े भी साथ ले गए थे।
हजारों साल पुराना प्रसिद्ध रजरप्पा मंदिर झारखंड के रामगढ़ जिले में है.... इस घटना की खबर जैसे ही लोगों को मिली, अफरातफरी मच गई.... हजारो लोग काम धाम छोड़ कर मंदिर की ओर निकल पड़े। कुछ ही देर में मंदिर के इर्द-गिर्द भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। इस घटना से इलाके का आदिवासी समाज भड़क उठा। उग्र लोगों ने रजरप्पा मंदिर के समीप भुचुंगडीह गांव के पास सड़क जाम कर दी। जाम में विधानसभा अध्यक्ष सीपी सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा सहित रामगढ़ के उपायुक्त और पुलिस अधीक्षक को उग्र लोगों ने घेर लिया.....काफी कोशिशों और शंकराचार्य की पहल के बाद इस मंदिर में पूजा अर्चना शुरू हुई।
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