बिहार भारत में सामाजिक परिवर्तन का गवाह रहा है। पौराणिक इतिहास से लेकर आधुनिक इतिहास काल में बिहार में कई ऐसे सामजिक परिवर्तन हुए हैं, जिसकी मिसाल देश के अन्य राज्यों में देखने को नहीं मिलती है। बुद्ध,महावीर जैसे महापुरुष इसी मिट्टी की देन है। इन महापुरुषों ने समाज को एक अलग राह दिखाया और जिनके बताये हुए रास्ते पर भारत ही नहीं दुनियां के कई देशों के लोग अपनी जिंदगी की मंजिल तलाशते हैं।
ये दिगर बात है कि बिहार की धरती पर बुद्ध और जैन धर्मों का विस्तार नहीं हो पाया। बात अगर आधुनिक इतिहास की करें तो आज़ादी की जंग में भी बिहार की धरती देश के काम आया। महात्मा गांधी ने अपने आंदोलन को चंपारण से ही आग़ाज किया। ये सारे ऐसे कारण हैं जिसके आधार पर बिहार को सामाजिक परिवर्तन का यज्ञ स्थल कहे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। आज आजादी पांच दशक पार कर चुका है,इन दरम्यान भी बिहार में कई सामाजिक परिवर्तन हुए जिसे भारत देश ने अंगिकार किया। आजादी के बाद नागरिकों में आर्थिक और सामाजिक असमानता को कम करने के लिए आरक्षण जैसे मुद्दों का भी बिहार ही अगुआ बना। जिसे मंडल कमीशन के नाम से जाना जाता है।
बिहार में सबसे अधिक समय तक सत्ता में रहने वाले लालू यादव भी इसी मंडल कमीशन की देन माने जाते है। हालांकि लालू के शासनकाल में बिहार हर क्षेत्र में पिछड़ता चला गया। लेकिन इसका दूसरा पहलू ये भी है कि लालू के शासनकाल में पिछड़ो गरीबों और उन लोगों के मुंह में जुबान आ गया जो कभी डर से गांव समाज के अगड़े वर्ग के लोगों के सामने दिग्घी बंधी रहती थी। ये वही बिहार है जहां पुलिस की लाल टोपी देखकर लोग भाग खड़े होते थे कि कहीं पुलिस पकड़ ना ले। लेकिन अब वैसा नहीं है एकदम ठेंठ बिहारी भी पुलिस से ये जरूर पूछता है कि उनके खिलाफ वांरट नहीं है तो पुलिस को कोई अधिकार नहीं है उसके साथ जबरदस्ती करने की। बात नीतीश कुमार की करें तो बिहार की जनता लालू राज से उब चुकी थी,
बीमार और पिछड़ा राज्य सुनते सुनते आम बिहारी पक गया था,लिहाजा बीजेपी जेडीयू को पूर्ण बहूमत देकर सत्ता की बागडोर नीतीश के हाथों सौंप दी। हालांकि नीतीश को ये उम्मीद नहीं थी। बिहार में 5 साल तक सत्ता रहने के बाद नीतीश कुमार को भी लगा कि बिहार में बंगाल की तर्ज पर एक समान भूमि वितरण करके सामाजिक परिवर्तन का अगुआ बनें, लेकिन बटाईदारी कानून की बात करकें नीतीश ने तमाम राजनीतिक पार्टियों को अपना दुश्मन बना लिया। हालांकि कुछ ऐसे भी दल हैं जिनके एजेंडे में समान भूमि वितरण प्रमुख था। लकिन वो भी नीतीश के इस मुद्दे पर विरोध करने लगे। कारण साफ था कि अगर बटाईदारी कानून लागू हो जाता तो बिहार में नीतीश की छवि एक सामाजिक परिवर्तन के प्रणेता का होता।
हालांकि 5साल की नीतीश सरकार ने राज्य में ऐसा कुछ नहीं किया जिससे आम लोगों को सहज रूप से रोजगार मिल गया हो,लेकिन मज़दूरो का पलायन और देश में बिहार की बदलती छवि ने ये साबित कर दिया है कि बिना विकास के अब काम नहीं चलने वाला है। इस बार के चुनाव में जातिवाद और अगड़े पिछड़े की राजनीति की डफली नहीं बजने वाली है। चाहे लालू हों चाहे नीतीश विकास के बिना बात नहीं बनने वाली है। लिहाजा हम कह सकते है कि बिहार में एक बार फिर सामाजिक परिवर्तन की आंच सुलग रही है। जिसमें बिहार की सांस्कृति,आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा शामिल होगा।
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