बरसात के मौसम में कोसी जब उफान पर होती है...तो तटबंध के अंदर रहने वाले लोगों के लिए आने-जाने का एकमात्र साधन नाव होता है...लेकिन नाव के इस सफर में कई लोग असमय ही काल के गाल में समा जाते हैं...
कोसी अगर यहां के लोगों के लिए कहर का दूसरा नाम है तो नाव इनके जीवन का करीबी साथी...बरसात के महीने में नाव इन्हें बाकी दुनिया से जोड़ती है...घर के लिए ज़रुरी सामान हो...या फिर...दवाइयां...नाव के जरिये ही लाया जा सकता है...ऐसे मौसम में अगर किसी की तबीयत खराब हो जाए तो फिर उफनती कोसी में भगवान ही उसका मालिक है...साथ ही बीच नदी में अगर लहरें बेकाबू हो गई तो फिर अंजाम की सिर्फ कल्पना की जा सकती है...
लेकिन इन इलाकों में नाव कम है...जो निजी नावें हैं भी वो जर्जर हाल में...और इसी जर्जर नाव में ओवरलोडिंग होती है...सोचिए अगर ऐसे में कोई हादसा हो जाए तो...नतीजा क्या होगा...पिछले साल सुपौल में 9नाव दुर्घटनाएं हुई थी...इसमे तीन लोगों की मौत हो गई थी...इस साल भी एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है...लेकिन अब प्रशासन को जागने की ज़रुरत है...ताकि कोसी की लहरों पर चलने वाली ये जिंदगियां महफूज रह सके...
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