19 सितंबर 2010

चंद महिलाओं ने बदली अपनी किस्मत


बिहार में पूर्णिया के सेमलगाछी गांव की खुसबू अब पूरे सीमांचल क्षेत्र में बिखरने लगी है। खेती कर क्षेत्र को महकाने का कारनामा गांव की कुछ महिलाओं ने कर दिखाया है। जिसकी कामयाबी के किस्से आज हर ओर सुनाए जा रहे हैं। दरअसल यहां पर गांव के किसान फूलों की खेती करने लगे हैं। यहां से फूल अब महानगरों तक सप्लाई होने लगी हैं। बेहतर आमदनी होने से इन महिलाओं की जिन्दगी अब सुधरने लगी है और हाथ में पैसा खनकने लगे हैं।
जिले के पूर्वी प्रखंड में मौजूद सेमलगाछी के खेत खलिहानों में रंग बिरंगे फूल लहलहाने लगे हैं। जिसे देखकर आप भी मंत्रमुग्ध हो सकते हैं।इन फलों ने यहां की जिंदगी और फिजा को बदल डाली है। लेकिन इस कामयाबी के पीछे की कहानी जानेंगे तो आपको अहसास होगा ही कि फूल और कांटों में चोली दामन का रिसता कैसे हैंघ्
कृसक बनी इन महिलाओं का कहना है कि इन लोगों फूलों की खेती की प्रेरणा घुमने के दौरान मिली। 10 साल पहले की बात है कि जब कमला माली सहेलियों के संग घूमने निकली ताखेतों में लगे
फूलों को देखा। देखने के बाद इन लोगों को लगा कि फूलों की खेती पारंपरिक खेती से कहीं ज्यादा फायदांमद साबित हो सकता है। वैसे भी खेती से तो नुकसान ही हो रहा है कोसिस करने पर सायद फूलों की खेती से फायदा हो जाए। पहले तो गांव वालों केा इन लोगों को सहयोग नहीं मिला लेकिन कुछ महिलाए जरूर आगे आईं और फूलों की खेती करने लगी।
सबसे पहले इन लोगों ने खेत का चयन किया फिर कोलकाता से गेंदा फूल के बीज मंगाए। इन लोागों ने प्रायोगिक तौर कुछ ही एकड़ खेतों में गेंदा फूल की खेती सुरू करदीए मौसम बदलते ही इन लोगों को कम लागत में ज्यादा मुनाफे का अहसास हो गया। और फिर क्या था बात पूरे इलाके में फैल गई लोगों का रूझान इस ओर बढ़ने लगा।धीरे धीरे गांव के ज्यादातर खेतों में तरह तरह के फूलों की खेती होने लगी और फिजाओं में कामयाबी की खुसबू घुलने लगी।
सेमलगाछी यानी फूलगाछी गांव में करीब दस परिवारों का रहना सहना होता हैं। इन परिवारों की ज्यादातर महिलाएं फूल की खेती करने लगे हैं। यहां पर करीब 25 से 30 एकड़ के रकबे में फूल की खेती होने लगी हैं। फूल बेचकर रोजाना हाथोें में पैसा होने से इन परिवारों की जिन्दगी अब इन्ही फूलों की तरह खिलने लगी है। इन बच्चों खेतों में काम करने के बजाए सहर के स्कूलों में घमाचोकरी करते देखे जा सकते हैं। बाकी वक्तों में बच्चे फूलों की रखवाली करते हैं। यहां से फूलों की सप्लाई बिहार के अन्य सहरों के अलावा पसिचम बंगालए उत्तरप्रदेस भूटान सहित नेपाल के बाजारों में अपनी खुसबू बिखेर रही हैं।
जितना मनमोहक कामयाबी की ये कहानी है इससे पहले गरीबी के चलते इन महिलाओं की जिन्दगी उतनी ही बदनुमा थी।पहले ये लोग दो वक्त की रोटी रोजी के लिए तरसते थे। अब खेती करने इन महिलाओं ने आर्थिक निर्भरता की अनोखी इबारत लिख दी है। महिलाओं की इस कामयाबी से प्ररित होकर दूसरे गांवों के किसान भी फूल की खेती करने लगे हैं।
बहरहालएवक्त बदल रहा है खेती करने के पैमाने भी बदलने लगे हैं सीमांचल क्षेत्र में पहले जूटए फिर अदरक उसके बाद केला की खेती के बाद फूलों की खेती करने लगे हैं।

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