26 सितंबर 2010

बच्चों की नायाब सोच का शानदार नतीजा

महाराष्ट्र में उस्मानाबाद जिले के तुलजापुर तहसील का एक आदर्श गांव बोड़नदीबाड़ी, आजकल राज्य के मानचित्र पर छाने लगा है। गांव विकास के पथ पर चल पड़ा है। गांव में पहले बुनियादी सुविधाओं की किल्लत थी लेकिन अब गांव की तस्वीर बदली-बदली सी नजर आने लगी है। दरअसल यहां पर लोगों ने स्वंय विकास की बेहतरीन मिसाल पेश की है। इस कामयाबी के पीछे बच्चों,शिक्षकों और जिला प्रशासन का योगदान अहम रहा है। मराठवाड़ा रीजन में आज यह गांव कामयाबी की मिसाल बन गई है। गांव को आदर्श गांव का दर्जा प्राप्त है साथ ही केंद्र और राज्य सरकार की और से सबसे बड़ा सम्मान निर्मल ग्राम पुरुस्कार व संत गाडगे बाबा सम्मान भी मिला है।

बदहाली से खुशहाली तक का सफर
बुनियादी सुविधाओं का सदियों से सामना कर रहे इस गांव में आज हर तरह की सुविधाएं है। गांव पहुंचने के लिए पक्की सड़कें हैं। जल निकासी के लिए पर्याप्त प्रबंधन है। गांव में इलाज के पाॅली क्लीनिक,आपसी मसलों का हल के लिए सामुदायिक भवन और बच्चों की पढ़ाई के लिए आधुनिक लाइब्रेरी भी है। गांव को रोशन करने के लिए स्ट्रीट लाइट है। पीने के पानी के लिए बेहतर इंतजाम है। मवेसियों को भी पानी और चारा देने के लिए व्यवस्था है। सिंचाई के लिए चेक डैम है। शौच के लिए हर घर का अपना शौचालय है। इसके अलावा गांव में ही रहकर बच्चों की पढ़ाई के लिए खूबसूरत स्कूल है।
एक जमाना था जब गांव में लोग बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसते थे। बिजली, पानी और सड़क का यहां पर नामोनिशान तक नहीं था। लोग शौच के लिए खेतों का इस्तेमाल करते थे। गांव की आब व हवा बिल्कुल प्रदूसित थी। बच्चे स्कूल जाने के बजाए खेतों में बाल मजदूरी करते थे। 400 से 500 की आबादी वाला इस गांव में लोग असंगठित तौर पर रह रहे थे। लोग खेती बारी कर किसी तरह से जीवन यापन कर तो लेते थे लेकिन सूखे ने इन लोगों का जीना मुहाल कर दिया था। लोग गरीबी और बेचारगी की मार से उबरने के लिए आतुर थे।
बच्चों की जिद ने बदली गांव की तस्वीर
बोड़नदी बाड़ी मूलतः बंजारा समुदाय का गांव है। राजेमर्रा की परेशानियों से दोचार ग्रामीण हमेशा से ही गांव में खुशहाली का स्वागत करना चाहते थे। लेकिन बगैर पहल के ऐसा कभी भी मुमकिन नहीं हो सका। बच्चे भी गांव की परेशानियों से बेहद आहत थे। इन परेशानियों को दूर करने के लिए बच्चों ने ठान ली और गांव को नई दिशा देने के लिए इन लोगों ने बाल पंचायत का गठन किया। पहले तो बाल पंचायत को कई विभागों में बांटा गया। फिर प्रजातांत्रिक तरीके से विभागों का बंटवारा हुआ। कोई वित्त मंत्री बना तो कोई वन एंव पर्यावरण मंत्री। गांव के विकास के लिए सभी मंत्रियों की तैनाती की गई। इन मंत्रियों को सहयोग देने के लिए सदस्यों का चयन किया गया। यह परिकल्पना शिक्षकों ने बच्चों को दी और पर्याय नामी एक सामाजिक संस्थान ने इन्हें अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में ज्ञान दिया। बच्चों ने अपनी प्राथमिकताओं में सदन के सामने रखा। शिक्षकों की मौजूदगी में चले इस बैठक में सभी मंत्रियों ने गांव में स्वच्छता अभियान चलाने के प्रस्ताव पर सहमति दी। मंजूरी मिलते ही हर एक मंत्री अपने काम में जुट गए। सभी बच्चों ने मिलकर कुछ ही दिनों में गांव का काया पलट कर दिया। बच्चों के इस काम में शिक्षकों का योगदान तो रहा ही लेकिन इस कारवां का हिस्सा आखिरकार गांव वाले भी बने।
बच्चों की अनोखी तरकीब का लाजवाब फल
बाल पंचायत ने मंत्रालयों का बंटवारा कर दिया और सदन में स्वच्छता अभियान चलाने का प्रस्ताव भी पास कर दिया। लेकिन बच्चों का सामना यहां पर एक रूढ़िवादी मानसिकता से थी। जो कभी बदल पाना ना मुमकिन सा लगता था। बच्चों ने इस काम को एक चुनौती के तौर पर लिया। अभियान को सफल बनाने के लिए बच्चों ने सबसे पहले सामुहिक तौर झाड़ू लगाना सुरू किया। गांव में दिन में सुबह और साम बच्चे सफाई अभियान चलाते थे। इस दौरान जो भी कचड़ा जमा होता था उसे जमा कर कंपोस्ट बनने के लिए छोड़ दिया जाता था। वित मंत्रालय इसे किसानों के हाथ किलो के भाव से बेच देती थी। इन पैसों का इस्तेमाल लाइब्रेरी के संवारने में किया जाता था। शुरूआत में इस काम को बच्चों को अकेले ही करना पड़ा। धीरे-धीरे गांव वालों ने भी इस काम में सहयोग किया और एक वक्त ऐसा आया जब लोगों ने बच्चों को सफाई अभियान से आजादी दे दी। गांव वालों ने अभियान को चलाने का जिम्मा खुद के सिर पर ले लिया। सफाई अभियान की सफलता से बच्चे बेहद खुश और उत्साहित थे।
अभियान दर अभियान सफलता
सफाई अभियान की सफलता से बच्चे बेहद उत्साहित थे। बच्चों ने नये अभियान को चलाने के लिए सदन लगाया। सदस्यों ने सदन में संपूर्ण स्वच्छता अभियान चलाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। जिसके तहत हर घर में शौचालय का निर्माण और खेतों में शौच से मुक्ति का लक्ष्य रखा गया था। हांलाकि यह अपने आप में अनोखी और चुनौती भरा कार्य था। लेकिन बच्चों की जिद थी संपूर्ण स्वच्छता अभियान को सफल कर दिखाना। इस अभियान को चलाने से पहले बच्चों एक नई तरकीब निकाली। सबसे पहले सभी सदस्यों ने स्कूल से लौटने के बाद कुछ घंटों तक खाना पीना तर्क कर दिया। रोजाना बच्चों की इन हरकतों से घर वाले परेशान होने लगे। एक वक्त ऐसा भी आया जब बच्चों ने दिन भर खाना पीना छोड़ दिया। खाना खाने के एवज में बच्चों की बस एक ही मांग होती थी कि शौचालय का निमार्ण कब होगा? इन गरीब ग्रामीणों के लिए यह काम आसान नहीं था। लेकिन इसका आसान हल था। गांव वालों ने थक हार कर पैसा इकठठा करना शुरू कर दिया। जितना भी पैसा जमा हुआ उससे इंट पत्थर सीमेंट और मेटेरियल मंगाया गया। धीरे धीरे कुछ घरों में शौचालय बनकर तैयार हो गया। फंड जमा करने का सिलसिला यूंही चलता रहा। तब गांव में पंचायत चुनाव भी हो गए थे और पंचायत के पास इसके लिए फंड था। इस काम में पंचायत ने भी पूर्ण सहयोग दिया। हर तरफ से सहयोग मिलने पर दो महीने में ही हर एक घरों में शौचालय बनकर तैयार हो गया।
बच्चों की नायाब सोच का शानदार नतीजा
गांव के हर एक घरों में शौचालय का निर्माण हो गया। बच्चे अब चैन की सांस लेने लगे और स्कूल से लौटने के बाद खाना पीना खाने लगे। लेकिन यहां भी चुनौती मुंह बाएं खड़ी थी। कोई भी शौचालय का इस्तेमाल नहीं करना चाहते थे। इस मसले का भी बच्चों के पास हल था। इसके लिए बच्चों ने सूरज उगने से पहले ही जागना शुरू किया और खेतों में पहुंचकर पहरेदारी करने लगे। जो भी शौच के लिए आता उसके सामने खड़े हो जाते। ऐसे में मारे सर्म के खेतों में कोई भी शौच नहीं कर पाता। ये सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक लोगों ने शौचालय को अपना नहीं लिया। बच्चों के इस काम में पंचायत ने फिर एक बार सहयोग दिया और सभी वार्ड सदस्यों ने ये जिम्मेदारी सर पर ले ली। एक वक्त ऐसा भी आया जब लोगों को खेतों में शौच के लिए जुर्माना देना पड़ा या फिर पंच से डांट सुननी पड़ी। काफी मशक्कत के बाद लोगों ने खुले आसमान के नीचे शौच करना बंद कर दिया और शौचालय का इस्तेमाल करने लगे। अब तो नौबत यह आ गई है कि जिस गांव में शौचालय की सुविधा नहीं वहां लोगों मेहमानी तक जाना पसंद नहीं करते।
 जिला प्रशासन का भरपूर सहयोग मिला
गांव में हगनदारी अभियान और सफाई मुहिम चलने से बोड़नदीबाड़ी की किस्मत ही बदल गई। इन अभियानों में सौ फीसदी सफलता से प्रभावित होकर जिला ग्रामीण विकास प्राधिकरण ने आर्थिक मदद दी। प्रशासन से सहयोग मिलने पर पंचायत ने गांव का विकास कराया। जिसके बदौलत गांव तक पक्की सड़क पहुंच गई और सामुदायिक भवन को बनवा दिया गया। इसके अलावा चापाकल और जल निकासी के लिए नाले का निर्माण भी किया गया। पानी जमा करने के लिए सूखी नदी में ही चेक डेम बना दिया है। गांव और घरों को रोशन करने के लिए सोलर स्ट्रीट लाइट लगाई गई। जात पंचायत और शादी विवाह के लिए सामुदायिक भवन को गांव के बीच में स्थापित किया गया। जहां पर महिलाओं को शिक्षण प्रशिक्षण भी दिया जाता है। बच्चों के लिए स्कूल भवन को आधुनिक बनाया गया और लाइब्रेरी भवन को भी चमका दिया गया। गांव को हंगनदारी मुक्त होने पर बतौर इनाम जो भी लाखों को रकम मिला उसे भी इन कामों के लिए खर्च किया गया।

स्वच्छ और सुन्दरता की मिसाल बनी गांव
बच्चों की जिद के चलते इस गांव की तस्वीर बदल चुकी हैं। गांव पूर्णतः हंगनदारी मुक्त हो चुका है। गांव विकास के पथ पर चल पड़ा है। गांव वालों ने स्वंय विकास की जो मिसाल पेश की है उसके चर्चे पूरे मराठवाड़ा रीजन में आम है। हालत यह है कि गांव को देखने के लिए रोजाना चार से पांच हजार लोग आते हैं। और इस आइडिये को अपने गांव में अपनाते हैं। जिसका असर यह हुआ किया है कि एक साथ तुलजापुर तहसील के कई गांवों के अलावा दूसरे जिलों में भी कई गांव आदर्श ग्राम के तौर पर स्थापित हो चुके है। राष्ट्रपति ने इन ग्राम पंचायतों के मुखिया को निर्मल ग्राम पुरुस्कार से भी नवाजा है।
जज़्बे को सलाम
बच्चों की जिद, शिक्षकों का मार्गदर्शन, पंचायत व ग्रामीणांे के सहयोग से इस गांव ने कामयाबी की बेहतरीन मिसाल पेश की है। लेकिन ग्रामीणों के सामने सामाजिक सुरक्षा का मसला अब भी मुंह बाएं खड़ी है जिसे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। खाली पेट इन लोगों ने जो कर दिखाया है वो वाकई काबिल ए तारीफ है। इस जज्बे को हम सलाम करते हैं। उम्मीद है कि अगर देश का हर शख्स गांवों के विकास में अपना योगदान दे तो वह दिन दूर नहीं जब दूर गांव में महात्मा गांधी के ‘ग्राम स्वराज’ का सपना साकार होने लगेगा।


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