15 सितंबर 2010

शिक्षकों की हालत मजदूरों से भी बदतर


यूपी, एमपी और बिहार जैसे बड़े राज्यों में बच्चों को कक्षा पहली की जानकारी उच्च क्लास में जाकर मिल पाती है। इन प्रदेशों के सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर पहले की अपेक्षा लगातार नीचे गिरता जा रहा है। हाल ही में प्रकाशित एक गैर सरकारी संस्थान की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक इन प्रदेशों में यह संकट दिनोंदिन गहराता जा रहा है और स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। भविष्य में सख्त कदम उठाने पर ही हालात पर काबू पाया जा सकता है ऐसा शोधकर्ताओं का मानना है... रिपोर्ट में इस पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह शिक्षकों की कमी और गैरहाजिर रहना बताया गया है। हकीकत यह भी है कि आज के दिन शिक्षक स्कूल के बजाए गांव- घरों की खाक छान रहे होते हैं। ऐसे में इन से बच्चों को पढ़ाने की उम्मीद क्यों करें?
दरअसल देश के कई प्रदेशों में इन दिनों शिक्षक पठन पाठन के बजाए सरकार का काम करते हैं। यही वजह है कि आज शिक्षकों का सरोकार स्कूल जाकर छात्रों और किताबों से रूबरू होने के बजाए ग्रामीणों की समस्याएं दूर करने तक सीमित रह गया है। एक शिक्षक के पीछे सरकार ने दर्जनों काम सौंप रखे हैं। ये कभी सर्वे करते हुए गांवों में मिल जाएंगे तो कभी मतदान केंद्रों में वोटिंग कराते... आज के दिन सारे टीचर जन- जन की गणना में लगे हुए हैं, इस खबर से आप बखूबी वाकिफ हैं... इसके अलावा दाल चावल खिचड़ी को लेकर परेशान तो पहले से हैं ही, मिड डे मील योजना टीचरों के लिए आफत बन कर आई है, स्कूल समितियों की गड़बड़ियों के चलते हजारों शिक्षक अब तक सस्पेंड भी हो चुके हैं, वहीं स्कूल भवन निर्माण का कार्य भी टीचरों को करना पड़ रहा है... लेवी को लेकर धमकियां मिलने से बेचारे शिक्षक और परेशान हैं...
एक जमाना था जब लोग शिक्षक होने पर गर्व करते थे। पढ़ लिखकर लोग इस नौकरी को पाने के लिए लाखांे मिन्नतें करते थे। तब हर एक शिक्षित परिवार में कम से कम एक शिक्षक तो होते ही थे। समाज में शिक्षकों का रूतबा सबसे अलग होता था, लेकिन बदले हालात और सरकार की अघोषित नीतियों के चलते आज के दिन सबसे बेकार पेशा इसे ही माना जाने लगा है। टीचर की नौकरी और इंडियन आर्मी की हालत एक जैसी हो गई है जिसे कोई मजबूरी में ही ज्वाइन करना चाहता है... टीचर बिरादरी भी अपनी बदहाली से बेहद मायूस हैं। टीचर अपनी खोई गरिमा को वापस पाने के लिए तरस रहे हैं, अगर दो टूक शब्दों में कहा जाए तो टीचरांे की हैसियत सरकारी और रजिस्टर्ड गुलामों से कम नहीं रह गई है....
आज के दिन शिक्षक भारी दबाव दबाव में हैं। एक तरफ तो सरकारी मनमानी से शिक्षक आहत हैं तो वहीं शिक्षा अधिकारियों की जुल्म व ज्यादती से ये लोग बेहद परेशान हैं... दूसरी और पारिवारिक दबाव भी इन पर हमेशा बना रहता है। समय पर वेतन नहीं मिल पाना इनकी परेशानी की सबसे बड़ी वजह है... ऐसे में बेचारे शिक्षक ना खुद के लिए कुछ कर पाते हैं ना ही परिवार के लिए... जिन्दगी भर नौकरी करने के बावजूद भी साईकिल, छतरी और झोले से इनका नाता नहीं टूट पाता है... आजकल टीचर सरकारी अनुबंधित मजदूर बन कर रह गए हैं, ये लोग इस्से उबरना चाहते हैं लेकिन इनकी कोई सुनने वाला भी तो नहीं है।
बिहार, उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्यों में राज्य कर्मचारियों को कभी भी समय पर वेतन मिलने का रिकाॅर्ड ही नहीं है... शिक्षकों को कभी कभी 6 महीने 7 महीने के बाद वेतन दिया जाता हैं.. फिर भी ये लोग अपने काम से जी नहीं चुराते हैं। कायदे से पैसा नहीं तो काम नहीं की नीति पर इन लोगों को अमल करनी चाहिए... जब आयकर जमा करने की बारी आती है तो उस वक्त वेतन रोक लिया जाता है। वेतन अधिकार अधिनियम के मुताबिक समय पर कर्मचारियों को वेतन देना सरकार का कर्तव्य है। इस मायने में देखें तो यह मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है। शिक्षकों का पर्व त्योहार ज्यादातर वेतन के बिना मायूसी में कटता है। ऐसे में कोई अपनी ईमानदारी और जरूरतों से कितना समझौता करे। इस मामूली रकम से घर परिवार का पालन पोषण होता है और उससे जो कुछ बचता है तो बच्चों की पढ़ाई पर खर्च किया जाता है... यहां तो हालात ऐसे हंै कि अगर शिक्षक भूखे हैं तो उसका बाल बच्चा भी प्यासे दिन काट रहे होते हैं, इस मामले को लेकर शिक्षकों में बेहद नाराजगी है... नाराज कर्मचारी जब सरकार की दमनकारी नीतियों का विरोध करते हैं तो उनपर एस्मा जैसे कानून नाफिज कर दिया जाता है...
मेरा मानना है कि देश की साक्षरता दर को बनाए रखने के लिए शिक्षकों के परिवारों का योगदान बेहद अहम है, क्योंकि हर एक टीचर अपने बाल-बच्चों को अच्छी तालीम किसी ना किसी तरह से दिलाते हैं... लेकिन हिदायत भी देते हैं कि पढ़ लिखकर इस पेशे को मत अपनाना... इसके अलावा समाज का यह एक ऐसा तबका है जो अमन और शांति से जीना चाहता है, दूसरों को जीने की अंदाज सिखाते हैं, समाज में गैर बरारी और शोषण को मिटाना चाहता है, साम्प्रदायिक सद्भाव को बनाए रखने में टीचरों का योगदान अहम है, बाकी ज्ञान बांटकर राष्ट्र निर्माण में अहम हिस्सेदारी निभाते हैं, ऐसे में सेवा प्रदाता देश की एक बहुत बड़ी आबादी देश में उपेक्षित और शोषित क्यों हैं?

1 टिप्पणी:

Asha Joglekar ने कहा…

देश की साक्षरता दर को बनाए रखने के लिए शिक्षकों के परिवारों का योगदान बेहद अहम है, क्योंकि हर एक टीचर अपने बाल-बच्चों को अच्छी तालीम किसी ना किसी तरह से दिलाते हैं... लेकिन हिदायत भी देते हैं कि पढ़ लिखकर इस पेशे को मत अपनाना ।
इसी में जाहिर है आपकी पोस्ट का सार ।