राज्य के नक्सल प्रभावित जिलों में महिलाओं ने बापू के चरखे से बंदूक को मात देने का बीड़ा उठाया है। चरखे से तैयार कपड़े ने जहां इन्हें आत्मनिर्भर बनाया है, वहीं शांति का संदेश भी दिया है। रांची के मोराब्दी मैदान में लगे खादी मेले में नक्सल प्रभावित विभिन्न गांवों की 500 औरतों के समूह ने अपनी कला दुनिया के सामने रखी है
चरखे पर अपना हुनर दिखा रही ये महिलाये दो साल पहले तक इनमें से ज्यादातर महिलाएं घर से बाहर नहीं निकलती थीं। जिंदगी रसोई तक सिमटी थी। नक्सलियों के खौफ ने घर में रहने को मजबूर कर दिया था। इनके स्वरोजगार के लिए राज्य खादी बोर्ड ने खरसावां-सरायकेला जिले के कुचाई व गोरो गांव से ट्रेनिंग कैंप शुरू किया। पहले कोई कैंप में आने को तैयार नहीं हुआ। पर गाँव की ही दो महिलाए सुखदेई व रीता ने हिम्मत दिखाई। बोर्ड के सहयोग से इन्होंने चरखा खरीदा। तीन महीने की ट्रेनिंग के बाद कपास व रेशम के सूत से जो ताना बुना, वह दूसरों के लिए आत्मनिर्भरता की मिसाल बन गया। कभी इन्ही महिलाओं को नक्सली अपने संगठन में शामिल होने का दबाब डाला करते थे ,लेकिन इन महिलाओं ने नक्सलवाद का सामना करने के लिए गाँधी जी के चरखे का सहारा लिया और आज ये आत्मनिर्भर है ,ये महिलाएं हर माह तीन से छह हजार रुपए कमा लेती हैं। बोर्ड इनके कपड़े खरीदता है। इससे ये बिचौलियों के चक्कर से बच जाती हैं। सूत कातने से लेकर शर्ट बनाने तक का काम ये इतनी दक्षता से करती हैं जैसे इन्हें प्रोफेशनल ट्रेनिंग मिली हो।
झारखण्ड के नक्सल प्रभावित जिलों में महिलाओं ने बापू के चरखे से बंदूक को मात देने का जो बीड़ा उठाया है वो अपने आप सराहनीये है ,साथ ही में उन नक्सली संगठनों के लिए मुहतोड़ जबाब भी है जो डर का माहोल पैदा कर ग्रामीणों को अपने साथ करने में लगे हुए है
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